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राष्‍ट्रीय कृषि कीट संसाधन ब्‍यूरो (रा.कृ.की.सं. ब्‍यूरो), जिसे पूर्व में राष्‍ट्रीय कृषि महत्‍वपूर्ण कीट ब्‍यूरो (एनबीएआईआई) के नाम से जाना जाता था, हेब्‍बल, बेंगलुरु में ठीक उसी परिसर में स्थित है जहाँ सन् 1957 में राष्‍ट्रमंडल जैव नियंत्रण संस्‍थान (सीआईबीसी) के भारतीय केंद्र की स्‍थापना की गई थी। सीआईबीसी के आगमन के साथ भारत में संगठित और व्यवस्थित जैव नियंत्रण अनुसंधान की शुरुआत हुई। इस अवधि के दौरान, फसल नाशीजीवों के प्राकृतिक शत्रु-कीटों और खरपतवारों के बारे में हमारा ज्ञान कई गुना बढ़ गया। सीआईबीसी के भारतीय केंद्र को सन् 1987 के दौरान बंद कर दिया गया था और फसल नाशीजीवों एवं खरपतवारों के जैव नियंत्रण पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपी-बीसी एवं डब्‍ल्‍यू), जिसे 1988 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तत्वावधान में शुरु किया गया था, को सन् 1988 में उसी परिसर में स्थानांतरित कर दिया गया था। केंद्र का नाम जैव नियंत्रण केंद्र रखा गया था और संपूर्ण कार्यक्रम के संचालन का कार्य राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन केंद्र (भाकृअनुप) के प्रशासनिक / वित्तीय नियंत्रण के तहत सौंपा गया। आठवीं पंचवर्षीय योजना में, सन् 1993 के दौरान परियोजना का दर्जा बढ़ाकर बेंगलुरु में मुख्यालय के साथ उसे एक स्वतंत्र जैव नियंत्रण परियोजना निदेशालय बनाया गया। पीडीबीसी देश की नोडल एजेंसी थी जो देशभर में फैले अपने 16 केंद्रों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर जैव नियंत्रण अनुसंधान संचालित करती थी। बेंगलुरु में स्थित इस निदेशालय ने कीट जैवअभिकारकों के महत्वपूर्ण समूहों के जैव-प्रणालियों पर प्राथमिक अनुसंधान किया। पीडीबीसी में अनुरक्षित संदर्भ-संग्रह (रेफरेंस कलेक्‍शन) को एक तकनीकी बुलेटिन के रूप में प्रसूचीबद्ध किया गया था, जो एक रिट्राइवल, इलेक्ट्रॉनिक प्ररूप में भी उपलब्ध है। इसके अलावा, कीट और रोग प्रबंधन के लिए कीटों के प्रजाति विकास, आणविक लक्षणवर्णन, बड़े पैमाने पर उत्पादन प्रौद्योगिकियां, अर्ध रासायनिकों, जैव कीटनाशक पर कार्य में तेजी लाई गई। 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान, पीबीडीसी का दर्जा बढ़ाकर उसे राष्‍ट्रीय कृषि महत्‍वपूर्ण कीट ब्‍यूरो (रा.कृ.की.सं. ब्‍यूरो) रखा गया और उसे स्‍थायी कृषि के लिए कृषि महत्वपूर्ण कीट संसाधनों (कुटकियों और मकड़ियों सहित) के संग्रहण, लक्षणवर्णन, प्रलेखन, संरक्षण, आदान-प्रदान और उपयोग के लिए एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य सौंपा गया। बारहवीं पंचवर्षीय योजना में ब्यूरो का नाम बदलकर अब राष्‍ट्रीय कृषि कीट संसाधन ब्‍यूरो (रा.कृ.की.सं.ब्‍यूरो) किया गया। ब्यूरो की गतिविधियों को तीन प्रभागों में विभाजित किया गया है।

संस्थान का अधिदेश

  • स्थायी कृषि के लिए कृषि महत्वपूर्ण कीट संसाधनों (कुटकी, मकड़ियों और संबंधित आर्थ्रोपोड सहित) के संग्रहण, लक्षणवर्णन, प्रलेखन, संरक्षण, आदान-प्रदान, अनुसंधान और उपयोग के लिए एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करना।

  • क्षमता निर्माण, प्रौद्योगिकियों का प्रसार और हितधारकों के साथ संपर्क स्थापित करना।

  • बायोकंट्रोल रणनीतियों का ऑन-फार्म सत्यापन करना, जिंस-आधारित फसल अनुसंधान संस्थानों, एआईसीआरपी / एआईएनपी के साथ संबंध स्थापित करना और क्षमता निर्माण करना।

जननद्रव्‍य संग्रहण और लक्षणवर्णन प्रभाग

मंडल जनादेश

  • संग्रहणों का संवर्धन करना और राष्ट्रीय संग्रहस्‍थल का अनुरक्षण करना।
  • पारंपरिक और आणविक दृष्टिकोणों तथा डीएनए बारकोडिंग का प्रयोग करते हुए कीटों, मकड़ियों और कुटकियों पर बायोसिस्टमेटिक अध्ययन करना।
  • चेकलिस्ट, कैटलॉग का सृजन करना, सचित्र प्रक्षेत्र पहचान गाइडों और संग्रहणों का अंकीयकरण करना, बायोसिस्‍टमेटिक एवं आईडेंटीफिकेशन सेवाओं में कार्यरत संस्थाओं एवं व्‍यक्तिगत लोगों का नेटवर्क बनाना।
  • विशिष्‍ट जैव नियंत्रण, जैव सुरक्षा और विदेशी नाशीजीवों के खतरे की संभावना के लिए कार्ययोजना बनाना।

जीनोमिक संसाधन प्रभाग

प्रभाग का अधिदेश

  • कुछ महत्वपूर्ण कीटों और कीटरोगजनक सूत्रकृमियों का पूर्ण-जीनोम अनुक्रम बनाना।
  • विशिष्ट प्रयोजन वाले जीनों के चयन और उनके उपयोग के लिए जीन एवं एलील माइनिंग करना।
  • आईपीएम के लिए आरएनएआई (RNAi) प्रौद्योगिकी विकसित करना।
  • उपयोगी जीनों के लिए जीनोम अनुक्रम संग्रहस्‍थल स्‍थापित करना।
  • एंडोसिम्‍बायोंट और उनकी कार्यात्मक भूमिका का निर्धारण करना।
  • जैव सूचना विज्ञान साधनों (टूल्‍स) का उपयोग करना और जीनोमिक डेटाबेस विकसित करना।

जननद्रव्‍य, संरक्षण और उपयोग प्रभाग

प्रभाग का अधिदेश

  • नाशीकीटों के प्रबंधन के लिए कृषि महत्वपूर्ण आर्थ्रोपोड का उपयोग करना।
  • लाभकारी कीटों के अत्‍याधुनिक व्‍यापक उत्‍पादन एककों की स्‍थापना के लिए प्रोटोकॉलों और डिजाइनों को विकसित करना।
  • लाभकारी संगरोध और लाभकारी कीट छोटे जाने के बाद उनकी निगरानी करना।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव।
  • फसल उत्पादकता में परागकों की भूमिका।
  • नाशीकीट प्रबंधन के लिए अर्ध रासायनिकों की भूमिका।
  • विषाणु-कीटवाहक गतिकियों पर अध्ययन करना।